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‘पल’

ख़ूबसूरत सा वो पल था,वो कल था। जब हम साथ थे तो, वो वक़्त हमारे साथ था।। ख़ूबसूरत सा वो पल था,वो कल था , वो वक़्त थम सा गया था,जब हम पुराने बातों में गुम थे। वो मौज मस्तियाँ, वो गाँव की गलियोँ के नज़ारों में खोये  हुए हम थे ।। ख़ूबसूरत सा वो पल था, वो कल था। बिना किसी बात माँ से रूठना मनाना, हर किसी  के साथ साईकल से रेस लगाना उन सल्द हवाओं में थोड़ा सा गुनगुनाना।। ख़ूबसूरत सा वो पल था, वो कल था, रोज़ दोस्तों के साथ वक़्त बिताना। थोड़ा खट्टा मिट्ठा बात सुनना और सुनाना।। कॉलेज के प्रोफेसरों की नक़ल उतारना, सबकी परेशानियों को दूर करने लग जाना, बात बात पर क्लास के चैप्टर पर आ जाना ख़ूबसूरत सा वो पल था, वो कल था                                      प्रियंका त्रिपाठी 

Dastan-e-mohabbat

दास्तां ये मोहब्बत की इज़्हार कर बैठे , हम एक दूसरे से इक़रार कर बैठे। दिल में है इबादत ये आश्ना बना बैठे, खुद को तुम्हें अपना असीर बना बैठे। पैगाम मेरा अब ये ज़रा तुम क़ुबूल कर लो, गिला छोड़के अब तो गुफ़्तगू कर लो। है चाह हमारी ये हमपर नाज़ ज़रा कर दो, छोड़ो फ़ासिला अब तो आगे कदम रख दो।।                                     priyanka tripathi

नन्ही परी

है चंचल सी मुस्कान लिये, जिसके मन में आवेग भरा। जो किरण भाँति सी चलती है, जिसके स्नेह का मोल नहीं। है सुन्दर सी प्रतिमा जैसी, सौभाग्य से होती हैं बेटी। अपने कुलदीपक के लिये, करते हैं ये पाप बड़ा। निर्दोष में मारी जाती हैं, जिसने देखा न घर अपना। प्रतिष्ठा की मिशाल हैं ये, सम्मान का गहना हैं तनया। सिर्फ़ बेटी ‘सम्बोधन’से, दौड़ी चली आती हैं बेटी।।                          PRIYANKA TRIPATHI

नज़्म

आपको ख्वाब में देखा तो,फ़लक से  इबादत कर बैठी ऐसे जाने नहीं दे सकती ख्वाब को,अपने लब्ज़ से अल्फाज़ बना बैठी जो कहीं गुलशन में इत्र से खुशबू बिखेर रहें थे,उन्हें उनके आशियानें से अपना आफ़ताब बना बैठी। यक़ीन होता नहीं मुझे खुद पर,जो आजतक अपने नये अख़लाक़ से अन्जान थी वो,आपको अपना नूर बना बैठी। ज़र्रा ज़र्रा कह रहा मुझसे,जो मुतासिर थी नहीं किसी से, आज वो अपने शौहर के लिए लब्ज़ सजा बैठी!!                                                         Priyanka Tripathi