नन्ही परी
है चंचल सी मुस्कान लिये,
जिसके मन में आवेग भरा।
जो किरण भाँति सी चलती है,
जिसके स्नेह का मोल नहीं।
है सुन्दर सी प्रतिमा जैसी,
सौभाग्य से होती हैं बेटी।
अपने कुलदीपक के लिये,
करते हैं ये पाप बड़ा।
निर्दोष में मारी जाती हैं,
जिसने देखा न घर अपना।
प्रतिष्ठा की मिशाल हैं ये,
सम्मान का गहना हैं तनया।
सिर्फ़ बेटी ‘सम्बोधन’से,
दौड़ी चली आती हैं बेटी।।
PRIYANKA TRIPATHI
जिसके मन में आवेग भरा।
जो किरण भाँति सी चलती है,
जिसके स्नेह का मोल नहीं।
है सुन्दर सी प्रतिमा जैसी,
सौभाग्य से होती हैं बेटी।
अपने कुलदीपक के लिये,
करते हैं ये पाप बड़ा।
निर्दोष में मारी जाती हैं,
जिसने देखा न घर अपना।
प्रतिष्ठा की मिशाल हैं ये,
सम्मान का गहना हैं तनया।
सिर्फ़ बेटी ‘सम्बोधन’से,
दौड़ी चली आती हैं बेटी।।
PRIYANKA TRIPATHI
Nishabd ho gai mai
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